۱- |
شادی و شکر که در طینتِ درویشانست |
|
ناشی از معرفت و همّتِ درویشانست |
|
|
۲- |
ظاهر و باطنِ این مَردُمِ خُرسند یکی ست |
|
رنگِ هَم، صورت و هم سیرتِ درویشانست |
|
|
۳- |
مایه ی شادی و شوق و شعف و شور و نشاط |
|
همه اندر گِروِ صحبتِ درویشانست |
|
|
۴- |
از ثَری تا به ثُریّا، ز ازل تا به ابد |
|
فُرجه زندگی و فرصتِ درویشانست |
|
|
۵- |
آتش و شعله زرتشت که در طور افتاد |
|
همه از بارقه طلعتِ درویشانست |
|
|
۶- |
حشمت و جاهِ مُفَصّل که سلیمان را بود |
|
اثری مختصر از حشمتِ درویشانست |
|
|
۷- |
شوکت و جاه و جلال و جبروتِ دارا |
|
کم تر از سابقهِ شوکتِ درویشانست |
|
|
۸- |
ای که بر رحمتِ حق، چشم طمع دوخته ای |
|
مرحمت ها همه در رحمتِ درویشانست |
|
|
۹- |
بِنِگَر منزلت و قدر که رضوان بهشت |
|
حاضر خدمتِ در حضرتِ درویشانست |
|
|
۱۰- |
شعله ی آتشِ نمرود و بزرگی لهیب |
|
اثر کوچکی از غیرت درویشانست |
|
|
۱۱- |
صاحبِ دولت اگر می طلبی اینانند |
|
دولت ار هست و بُوَد دولتِ درویشانست |
|
|
۱۲- |
شاد و دل گرم دلی باد که آن صاحب دل |
|
روز و شب در صددِ خدمتِ درویشانست |
|
|
۱۳- |
گفت حافظ سخنی نغز «جلالی» بشنو |
|
«روضه ی خُلدِ بَرین خلوتِ درویشان است» |
|
 |